हाथ तू अफ़्सोस से ऐसे न मल हो जाएगी आज क़िस्मत मेहरबाँ न हो तो कल हो जाएगी तू वो क़तरा बन समुंदर आरज़ू जिस की करे तेरी ये दिलकश अदा ज़र्बुल-मसल हो जाएगी कार स्कूटर कहाँ ईमान-दारी में हुज़ूर की बहुत कोशिश तो बस इक साइकल हो जाएगी हादसे बिखरे हुए हैं हर क़दम पर ध्यान रख ज़िंदगी वर्ना सिमट कर पल दो पल हो जाएगी मसअला हो एक का तो तो सोचने की बात है एक है दोनों की गर मुश्किल तो हल हो जाएगी हम ने सोचा नोट कर लें शेर जब अच्छा हुआ हम को क्या मालूम था 'अंजुम' ग़ज़ल हो जाएगी