हवा में जो ये एक नमनाकी है

By rafiq-raazNovember 13, 2020
हवा में जो ये एक नमनाकी है
सदा तेज़ रफ़्तार दरिया की है
क़दम रोक मत पीछे मुड़ के न देख
ये आवाज़ कम-बख़्त दुनिया की है


मकाँ तो मिरा ला-मकाँ हो गया
शिकायत मगर तंगी-ए-जा की है
भड़कता है शोला सा रंग-ए-सुकूत
क़लंदर के लहजे में बे-बाकी है


पड़ा रह बदन के दरीचे न खोल
मिरी उँगलियों में हवसनाकी है
शजर से लिपट कर न रोएगी ये
हवा जो चली है वो सहरा की है


मिरे शीशा-ए-ला-ज़माँ पर अभी
बहुत गर्द इमरोज़ ओ फ़र्दा की है
चमक आँख में हैरतों की नहीं
बस इक धूप ताब-ए-तमाशा की है


64777 viewsghazalHindi