हवा का रुख़ बदलने से परिंदा हो गया ग़ुस्सा
By shazia-niyaziFebruary 29, 2024
हवा का रुख़ बदलने से परिंदा हो गया ग़ुस्सा
यहाँ हर दूसरे किरदार का है मसअला ग़ुस्सा
मैं अक्सर मिर्च सालन में ज़ियादा डाल देती हूँ
किसी सूरत तो ज़ाहिर हो मिरी रंजिश मिरा ग़ुस्सा
चलो अब मान भी लो तुम तुम्हें ज़ेहनी मसाइल हैं
ज़रा सी बात पे करते हो तुम अच्छा-भला ग़ुस्सा
मिरी हर डाँट पर बच्चे जवाबन मुस्कुराते हैं
बस इक मुस्कान से उड़ जाता है बन कर हवा ग़ुस्सा
तिरी ख़फ़गी के सारे ज़ाइक़ों का 'इल्म है मुझ को
कभी है नीम सा कड़वा कभी है चटपटा ग़ुस्सा
ज़माने मेरी मन-मानी पे क्यों आँखें दिखाता है
बहुत देखे तिरे जैसे तवंगर चल हटा ग़ुस्सा
यहाँ हर दूसरे किरदार का है मसअला ग़ुस्सा
मैं अक्सर मिर्च सालन में ज़ियादा डाल देती हूँ
किसी सूरत तो ज़ाहिर हो मिरी रंजिश मिरा ग़ुस्सा
चलो अब मान भी लो तुम तुम्हें ज़ेहनी मसाइल हैं
ज़रा सी बात पे करते हो तुम अच्छा-भला ग़ुस्सा
मिरी हर डाँट पर बच्चे जवाबन मुस्कुराते हैं
बस इक मुस्कान से उड़ जाता है बन कर हवा ग़ुस्सा
तिरी ख़फ़गी के सारे ज़ाइक़ों का 'इल्म है मुझ को
कभी है नीम सा कड़वा कभी है चटपटा ग़ुस्सा
ज़माने मेरी मन-मानी पे क्यों आँखें दिखाता है
बहुत देखे तिरे जैसे तवंगर चल हटा ग़ुस्सा
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