हवा से रिश्ता मिरा उस्तुवार होते हुए
By salim-saleemFebruary 28, 2024
हवा से रिश्ता मिरा उस्तुवार होते हुए
वो देखता रहा मुझ को ग़ुबार होते हुए
लगा हूँ तजरबा-ए-ज़ख़्म में सो अब मिरे पास
कोई न आए मिरा ग़म-गुसार होते हुए
निकल ही जाता मैं ज़िंदान-ए-रोज़-ओ-शब से मगर
पकड़ लिया गया मुझ को फ़रार होते हुए
वो देखता रहा मुझ को ग़ुबार होते हुए
लगा हूँ तजरबा-ए-ज़ख़्म में सो अब मिरे पास
कोई न आए मिरा ग़म-गुसार होते हुए
निकल ही जाता मैं ज़िंदान-ए-रोज़-ओ-शब से मगर
पकड़ लिया गया मुझ को फ़रार होते हुए
48961 viewsghazal • Hindi