हयात-ओ-मौत के पर्दे उठा दिए जाएँ

By kanwal-pradeep-mahajanFebruary 27, 2024
हयात-ओ-मौत के पर्दे उठा दिए जाएँ
कि अब नुक़ूश-ए-हक़ीक़त दिखा दिए जाएँ
तमाम रात मिरे साथ जले हैं तन्हा
सहर क़रीब है दीपक बुझा दिए जाएँ


हमारे दौर में हुक्काम की ये साज़िश है
कि ख़ाम नींव पे ऐवाँ बना दिए जाएँ
ज़रा सी देर की ख़ुशियों ने उन को लूट लिया
उदासियों के नगर फिर बसा दिए जाएँ


ख़ुलूस-ओ-दोस्ती बीते दिनों की बातें हैं
कि ताक़ पर ये गुहर अब सजा दिए जाएँ
कोई जवाब ही जिन का न बन पड़े तुम से
जो वो सवाल ही अब के उठा दिए जाएँ


जो हम चले हैं नए नक़्श अब करें पैदा
तमाम नक़्श-ए-कफ़-ए-पा मिटा दिए जाएँ
नए हैं तौर तरीक़े निज़ाम-ए-नौ है कँवल
पुराने दौर के क़िस्से भुला दिए जाएँ


36443 viewsghazalHindi