हज़ारों की जान ले चुका है ये चेहरा ज़ेर-ए-नक़ाब हो कर

By aasi-ghazipuriAugust 7, 2024
हज़ारों की जान ले चुका है ये चेहरा ज़ेर-ए-नक़ाब हो कर
मगर क़यामत करोगे बरपा जो निकलोगे बे-हिजाब हो कर
शनाख़्त उस की हो सहल क्यूँ-कर कि जब न तब भेस इक नया हो
वो दिन को ख़ुर्शीद हो के निकले तो रात को माहताब हो कर


मैं दिल से उस शैख़ का हूँ क़ाइल कि मय-कदे में पढ़े तहज्जुद
लगाए मस्जिद में ना'रे हू-हक़ के मह्व-ए-दौर-ए-शराब हो कर
फ़िराक़ में इस क़दर तरद्दुद अभी तुम्हें कुछ ख़बर नहीं है
बढ़ेगी कुछ और बे-क़रारी विसाल में कामयाब हो कर


न कर तू इतनी मज़म्मत इस की बहिश्त की चीज़ है ये वा'इज़
ये बल्कि है जोश-ए-बहर-ए-रहमत अगरचे आया शराब हो कर
वो था बदन या कोई गुल-ए-तर फिर उस की ख़ुश्बू वो रूह-परवर
जिधर से गुज़रे बसा वो रस्ता बहा पसीना गुलाब हो कर


जनाब'नासिख़' की ये हिदायत है याद रखना तुम इस को 'आसी'
ग़ज़ल में ऐसे हों शे'र जिन में कमी न हो इंतिख़ाब हो कर
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