हज़ारों सर किसी के पाँव पर देखे नहीं जाते

By afsar-saleem-afsarMay 22, 2024
हज़ारों सर किसी के पाँव पर देखे नहीं जाते
निज़ाम-ए-ज़र के ये ज़ेर-ओ-ज़बर देखे नहीं जाते
अहाते ये रिवाजों के ये दीवारें समाजों की
दिलों के शहर में पत्थर के घर देखे नहीं जाते


उलट दो इन नक़ाबों को ये पर्दे चाक कर डालो
घटाओं के लपेटे में क़मर देखे नहीं जाते
मसर्रत जिन से बरगश्ता अज़िय्यत जान का हिस्सा
ये लाशे ज़िंदगी के दोश पर देखे नहीं जाते


किसी का ज़िक्र ही छेड़ो कि दिल के दाग़ रौशन हों
ये मुँह काले अंधेरे रात भर देखे नहीं जाते
लिफ़ाफ़ा सिर्फ़ बदला है अभी मज़मूँ नहीं बदला
वही रहबर ब-अंदाज़-ए-दिगर देखे नहीं जाते


नज़र से जब नज़र मिलती है 'आलम और होता है
उतर आते हैं वो दिल में मगर देखे नहीं जाते
किसी का दिल हथेली पर तुम्हारी क्या क़यामत है
ये टुकड़े काँच के यूँ आँच पर देखे नहीं जाते


कभी आँखें कभी हम दिल कभी जाँ तक बिछाते हैं
गुलों के पाँव 'अफ़सर' ख़ाक पर देखे नहीं जाते
48643 viewsghazalHindi