हो जिस क़दर कि तुझ से ऐ पुर-जफ़ा जफ़ा कर कहता हूँ मैं भी तुझ से ऐ बा-वफ़ा वफ़ा कर बैतुस-सनम में जा कर हमदम ब-रब्ब-ए-का'बा लाया हूँ उस सनम को घर तक ख़ुदा ख़ुदा कर गौहर जो अश्क के हैं कुछ चश्म के सदफ़ में ग़लताँ न ख़ाक में कर आँसू बहा बहा कर मरते हैं हम तो लेकिन सुन तेरी आमद आमद उम्मीद ने रखा है अब तक जला जला कर तुझ को पतंग उड़ाते देखा जो आशिक़ों ने कट मर के बैठे अक्सर घर-वर लुटा लुटा कर सद-चाक दिल का होना हर सुब्ह-दम हमारा गुल से तू कह रही है बुलबुल हँसा हँसा कर आता है वो शराबी खाने कबाब दिल का कहता है झूटी बातें क्या क्या चबा चबा कर साक़ी मुआ'फ़ रक्खो गुस्ताख़ियाँ हमारी बे-ख़ुद किया नशे में तू ने पिला पिला कर बोसे का लिख के नुस्ख़ा याक़ूती-ए-लबों से बीमार-ए-इश्क़ तेरा है बे-दवा दवा कर हर सुब्ह चाक हो है नासेह मिरा गरेबाँ हर शाम तू रखे है नाहक़ सिला सिला कर और इक ग़ज़ल 'मुहिब' कह बर-क़ौल 'मीर'-साहिब औरों से दे इशारे हम से छुपा छुपा कर