होश-ओ-हवास अक़्ल-ओ-ख़िरद फ़न समेट कर ले जाओ तुम हमारी ये उलझन समेट कर मैं ने जहाँ रखा था सभी धन समेट कर बैठा हुआ है नाग वहाँ फन समेट कर जी भर के रोया शीशा-ए-दिल साफ़ हो गया गर्द-ओ-ग़ुबार ले गया सावन समेट कर उजड़ी हुई है कुटिया मिरी हाए हाए हाए रौनक़ तमाम ले गई जोगन समेट कर बरसात आई आ के ऐ 'मज़हर-मुजाहिदी’ दीवार-ओ-दर का ले गई रोग़न समेट कर