हब्स जब हद से बढ़ा जिस्म के वीराने में
By tasneem-abidiMarch 2, 2021
हब्स जब हद से बढ़ा जिस्म के वीराने में
रूह ने बैन किया दिल के अज़ा-ख़ाने में
हाए वो रंग जो उभरा मिरी बे-ध्यानी से
हाए वो नक़्श जो बनता गया अन-जाने में
अब कोई हर्फ़-ओ-मआ'नी की ख़बर क्या लाए
अब कहानी ही कहाँ है मिरे अफ़्साने में
कोई गुत्थी न खुली एक भी उक़्दा न खुला
मसअला और उलझता गया सुलझाने में
कैसी ख़ुद-रौ थी तिरी याद जो आती ही रही
दर-ओ-दीवार धड़कने लगे काशाने में
ताक़-ए-उमीद से पैमाना-ए-फ़र्दा ख़ाली
तिश्नगी बटने लगी है तिरे मय-ख़ाने में
फ़स्ल-ए-गुल में भी तिरा चाक गरेबाँ न हुआ
कोई आशुफ़्ता-मिज़ाजी नहीं दीवाने में
रूह ने बैन किया दिल के अज़ा-ख़ाने में
हाए वो रंग जो उभरा मिरी बे-ध्यानी से
हाए वो नक़्श जो बनता गया अन-जाने में
अब कोई हर्फ़-ओ-मआ'नी की ख़बर क्या लाए
अब कहानी ही कहाँ है मिरे अफ़्साने में
कोई गुत्थी न खुली एक भी उक़्दा न खुला
मसअला और उलझता गया सुलझाने में
कैसी ख़ुद-रौ थी तिरी याद जो आती ही रही
दर-ओ-दीवार धड़कने लगे काशाने में
ताक़-ए-उमीद से पैमाना-ए-फ़र्दा ख़ाली
तिश्नगी बटने लगी है तिरे मय-ख़ाने में
फ़स्ल-ए-गुल में भी तिरा चाक गरेबाँ न हुआ
कोई आशुफ़्ता-मिज़ाजी नहीं दीवाने में
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