हम ग़ैर समझते उसे ऐसा भी नहीं ख़ैर
By hamida-shahinOctober 31, 2020
हम ग़ैर समझते उसे ऐसा भी नहीं ख़ैर
लेकिन वो किसी का नहीं अपना भी नहीं ख़ैर
जो सोचते रहते हैं वो करना नहीं मुमकिन
करने के इरादे से तो सोचा भी नहीं ख़ैर
शोहरा है कि रुस्वाई की तस्दीक़ है वो शख़्स
शोहरत का भरोसा कोई होता भी नहीं ख़ैर
कुछ बन के दिखाने की तमन्ना का बना क्या
इतनी सी तमन्ना में तो बनता भी नहीं ख़ैर
हम उस के लिए अपनी नज़र में बुरे ठहरें
अच्छा है वो अच्छा भई इतना भी नहीं ख़ैर
कुछ सैंत के रखने का हमें शौक़ नहीं था
कुछ सैंत के रखने के लिए था भी नहीं ख़ैर
गो एक अज़िय्यत है तिरा रंग-ए-तग़ाफ़ुल
ये रंग किसी और पे सजता भी नहीं ख़ैर
उस शख़्स पे तन्हाई तो उतरेगी बला की
जो है भी नहीं ख़ैर है लगता भी नहीं ख़ैर
सब ख़ैर हो सब ख़ैर हो ऐ मजमा-ए-ज़ाहिर
हम भीड़ का हिस्सा नहीं तन्हा भी नहीं ख़ैर
ये ख़ैर फ़क़त लफ़्ज़ नहीं फ़हम-ओ-यक़ीं है
जो ख़ैर समझता नहीं होता भी नहीं ख़ैर
लेकिन वो किसी का नहीं अपना भी नहीं ख़ैर
जो सोचते रहते हैं वो करना नहीं मुमकिन
करने के इरादे से तो सोचा भी नहीं ख़ैर
शोहरा है कि रुस्वाई की तस्दीक़ है वो शख़्स
शोहरत का भरोसा कोई होता भी नहीं ख़ैर
कुछ बन के दिखाने की तमन्ना का बना क्या
इतनी सी तमन्ना में तो बनता भी नहीं ख़ैर
हम उस के लिए अपनी नज़र में बुरे ठहरें
अच्छा है वो अच्छा भई इतना भी नहीं ख़ैर
कुछ सैंत के रखने का हमें शौक़ नहीं था
कुछ सैंत के रखने के लिए था भी नहीं ख़ैर
गो एक अज़िय्यत है तिरा रंग-ए-तग़ाफ़ुल
ये रंग किसी और पे सजता भी नहीं ख़ैर
उस शख़्स पे तन्हाई तो उतरेगी बला की
जो है भी नहीं ख़ैर है लगता भी नहीं ख़ैर
सब ख़ैर हो सब ख़ैर हो ऐ मजमा-ए-ज़ाहिर
हम भीड़ का हिस्सा नहीं तन्हा भी नहीं ख़ैर
ये ख़ैर फ़क़त लफ़्ज़ नहीं फ़हम-ओ-यक़ीं है
जो ख़ैर समझता नहीं होता भी नहीं ख़ैर
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