हुक़ूक़ जब याद आए अपने

By shariq-kaifiFebruary 29, 2024
हुक़ूक़ जब याद आए अपने
ग़ुलाम पर मुस्कुराए अपने
बहुत जनाज़े थे रास्ते में
क़दम भी हम गिन न पाए अपने


वो कौन सी राज़-दारीयाँ थीं
कि साए बाहर बिठाए अपने
हवा ने आँधी की शक्ल ले कर
तमाम क़ैदी छुड़ाए अपने


इक और दिन की है आमद आमद
ख़ुदा ने मोहरे सजाए अपने
खड़े हैं लाशों के दरमियाँ हम
इमाम-ज़ामिन बँधाए अपने


किया ही क्या और ज़िंदगी भर
बदन के नख़रे उठाए अपने
किसी का दुश्मन नहीं था दरिया
भँवर तो हम साथ लाए अपने


यही तो महफ़िल बिगाड़ते हैं
जो हैं यहाँ बिन-बुलाए अपने
66516 viewsghazalHindi