इबारतें चमक रही हैं दिल में तेरे प्यार की दिए की लौ में जल रही है रात इंतिज़ार की भटक रही है आसमाँ में आरज़ू की फ़ाख़्ता ज़मीं पे ज़िंदगी पड़ी है आग में बुख़ार की मिरी वो मंज़िलें न थीं जो मंज़िलें मुझे मिलीं मिरी नहीं थी राह वो जो मैं ने इख़्तियार की झुलस गए निगाह के तमाम ख़्वाब आँच से ये दास्तान है नज़र पे रौशनी के वार की सुला रही है बीच राह में थकन हमें 'चराग़' जगा रही है जुस्तुजू मगर तिरे दयार की