इब्तिदा-ओ-इंतिहा है आइना-दर-आइना

By siraj-azmiFebruary 29, 2024
इब्तिदा-ओ-इंतिहा है आइना-दर-आइना
'अक्स मेरा बोलता है आइना-दर-आइना
कौन गुज़रा है मिरे दिल से ख़यालों की तरह
जाने किस का नक़्श-ए-पा है आइना-दर-आइना


जैसे हो तदबीर-दर-तदबीर राज़-ए-ज़िंदगी
आदमी यूँ देखता है आइना-दर-आइना
दिल-ब-दिल सैल-ए-तमन्ना रग-ब-रग ज़ौक़-ए-हयात
सोचता हूँ क्या छुपा है आइना-दर-आइना


मानिए तो मुन्कशिफ़ है दिल पे मिस्ल-ए-महर-ओ-माह
सोचिए तो फिर ख़ुदा है आइना-दर-आइना
मैं हूँ ख़ुद अपनी शिकस्तों की सदा-ए-बाज़गश्त
तू मिला भी तो मिला है आइना-दर-आइना


राज़-अंदर-राज़ है इस तरह सारी काएनात
जैसे कोई आइना हो आइना-दर-आइना
जो ख़ुद अपनी आग में जलता रहा है 'उम्र-भर
वो 'सिराज' अब के जला है आइना-दर-आइना


31886 viewsghazalHindi