इक बुत है जिसे मेरी नज़र ढूँढ रही है मुश्किल है मुलाक़ात मगर ढूँढ रही है लाखों में किसी एक के काँधों पे मिलेगा वो सर कि जिसे अज़्मत-ए-सर ढूँढ रही है मंज़िल ने मेरे पाँव को चूमा है कई बार मैं वो हूँ जिसे गर्द-ए-सफ़र ढूँढ रही है इक बार करो जंग में उस माँ का तसव्वुर जो फ़ौत हुआ लख़्त-ए-जिगर ढूँढ रही है परवाज़ को बाक़ी हैं अभी और भी अम्बर हसरत मेरी अब ज़र्फ़ के पर ढूँढ रही है इक रोज़ उदासी ने मिरा नाम सुना था उस दिन से मुझे शाम-ओ-सहर ढूँढ रही है ख़्वाहिश है बड़ी देर से 'काफ़िर' की जबीं को सज्दे के लिए यार का दर ढूँड रही है