इक हवा ऐसी चली बगुले भी काले हो गए

By chand-akbarabadiOctober 28, 2020
इक हवा ऐसी चली बगुले भी काले हो गए
चाँद को सर्दी लगी सूरज को छाले हो गए
मज़हबी आतिश ने बचपन की जला दी दोस्ती
हम भी का'बा बन गए तुम भी शिवाले हो गए


हौसला छूने का था बचपन में तुझ को आसमाँ
बरसों तेरी सम्त इक पत्थर उछाले हो गए
हिज्र की दौलत ने माला-माल मुझ को कर दिया
बाल चाँदी के हुए सोने के छाले हो गए


ऐरे-ग़ैरे नत्थू-ख़ैरे पढ़ रहे हैं चेहरे अब
चेहरे चेहरे न हुए गोया रिसाले हो गए
दाग़ सूरज की हुकूमत पर भी कुछ तो लग गया
कुछ उजाले जब अँधेरों के निवाले हो गए


आइनों पर पत्थरों के क़त्ल का इल्ज़ाम क्यूँ
आइने आईने न हों जैसे भाले हो गए
देख लेते तुम भी अपने इस ज़मीं के 'चाँद' को
इतनी जल्दी आसमाँ के क्यूँ हवाले हो गए


85838 viewsghazalHindi