इस बज़्म में न होश रहेगा ज़रा मुझे ऐ शौक़-ए-हरज़ा-ताज़ कहाँ ले चला मुझे ये दर्द-ए-दिल ही ज़ीस्त का बाइस है चारा-गर मर जाऊँगा जो आई मुआफ़िक़ दवा मुझे इस ज़ौक़-ए-इब्तिला का मज़ा उस के दम से है सब कुछ मिला मिला हो दिल-ए-मुब्तला मुझे दैर-ओ-हरम को देख लिया ख़ाक भी नहीं बस ऐ तलाश-ए-यार न दर दर फिरा मुझे ये दिल से दूर हो न दिखाए ख़ुदा वो दिन ज़ालिम तिरा ख़याल है दिल से सिवा मुझे रंज-ओ-मलाल ओ हसरत-ओ-अरमान-ओ-आरज़ू जाने से एक दिल के बहुत कुछ मिला मुझे मैं जानता हूँ आप हैं मस्त अपने हाल में 'बेख़ुद' नहीं है आप से मुतलक़ गिला मुझे