इस गर्दिश-ए-मुदाम से घबरा गया हूँ मैं रफ़्तार एक सी है तो उक्ता गया हूँ मैं हर पल हुजूम-ए-यास का पैकर बना हुआ अक्सर इस एक हाल में देखा गया हूँ मैं पज़मुर्दा ज़िंदगी से तो पीछा छुटे कि बस हर दिन ख़ुशी की आस में मरता गया हूँ मैं अपनों को अपना कहते हुए आए शर्म सी किस किस नज़र से दोस्तो देखा गया हूँ मैं मैं ने नदीम रख तो लिया हुस्न का भरम पर इश्क़ की चिता में जलाया गया हूँ मैं ले कर उठा हूँ फिर से मैं इक और अज़्म-ए-नौ 'आज़िम' के नाम से भी तो जाना गया हूँ मैं