इस क़दर ज़ेहन में अब वाहिमे पड़ जाते हैं

By ahmed-rais-nizamiMay 26, 2024
इस क़दर ज़ेहन में अब वाहिमे पड़ जाते हैं
लोग मिलते भी नहीं हैं कि बिछड़ जाते हैं
आप दस्तार बचा पाओगे कैसे अपनी
तेज़ आँधी में घने पेड़ भी झड़ जाते हैं


हौसले की तुम्हें ताक़त का नहीं अंदाज़ा
पाँव शेरों के भी मैदाँ से उखड़ जाते हैं
मैं ने देखे कई हालात से हारे हुए लोग
अपनी ही क़ब्र बना लेते हैं गड़ जाते हैं


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