'इश्क़-ए-उर्दू है 'मीर' हैं हम भी
By mast-hafiz-rahmaniFebruary 27, 2024
'इश्क़-ए-उर्दू है 'मीर' हैं हम भी
ग़म-कदे के असीर हैं हम भी
आओ कुछ दूर साथ साथ चलें
तुम भी हो राहगीर हैं हम भी
कज-कुलाही है शान-ए-सुल्तानी
आप अपनी नज़ीर हैं हम भी
घर में बिखरी हुई किताबें हैं
ख़ुश बहुत हैं अमीर हैं हम भी
मसअला कोई मसअला न रहा
अपनी धुन में फ़क़ीर हैं हम भी
हाथ ख़ाली कोई नहीं जाता
दस्त दे दस्तगीर हैं हम भी
हम से रौशन हैं दिल के आईने
'मस्त' रौशन-ज़मीर हैं हम भी
ग़म-कदे के असीर हैं हम भी
आओ कुछ दूर साथ साथ चलें
तुम भी हो राहगीर हैं हम भी
कज-कुलाही है शान-ए-सुल्तानी
आप अपनी नज़ीर हैं हम भी
घर में बिखरी हुई किताबें हैं
ख़ुश बहुत हैं अमीर हैं हम भी
मसअला कोई मसअला न रहा
अपनी धुन में फ़क़ीर हैं हम भी
हाथ ख़ाली कोई नहीं जाता
दस्त दे दस्तगीर हैं हम भी
हम से रौशन हैं दिल के आईने
'मस्त' रौशन-ज़मीर हैं हम भी
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