'इश्क़ को जितना भी समझा हम ने
By shariq-kaifiFebruary 29, 2024
'इश्क़ को जितना भी समझा हम ने
बेवफ़ाई में ही समझा हम ने
आँख खुलने को करामत जाना
सुब्ह को वापसी समझा हम ने
वस्ल के बा'द किया वस्ल पे ग़ौर
हिज्र को पेशगी समझा हम ने
वो जो पहले से पता था हम को
दूसरों से वही समझा हम ने
हर पलक पहली थी झपकाई जो
साँस को आख़िरी समझा हम ने
आज इंकार किया जानने से
आज कुछ वाक़'ई समझा हम ने
बेवफ़ाई में ही समझा हम ने
आँख खुलने को करामत जाना
सुब्ह को वापसी समझा हम ने
वस्ल के बा'द किया वस्ल पे ग़ौर
हिज्र को पेशगी समझा हम ने
वो जो पहले से पता था हम को
दूसरों से वही समझा हम ने
हर पलक पहली थी झपकाई जो
साँस को आख़िरी समझा हम ने
आज इंकार किया जानने से
आज कुछ वाक़'ई समझा हम ने
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