'इश्क़ पहली मिरी बुराई थी
By shariq-kaifiFebruary 29, 2024
'इश्क़ पहली मिरी बुराई थी
जो कि सब की नज़र में आई थी
उस की इक इक ख़ुशी पे मरता था
जिस से हर वक़्त की लड़ाई थी
वही तरकीब आँसुओं वाली
आज मैं ने भी आज़माई थी
ये भी कोई भला सवाल हुआ
याद आई तो कितनी आई थी
मिरी तन्हाई की ज़रूरत भी
उस की नज़रों में बेवफ़ाई थी
'इश्क़ का एक मरहला तू था
एक मंज़िल तिरी जुदाई थी
जो कि सब की नज़र में आई थी
उस की इक इक ख़ुशी पे मरता था
जिस से हर वक़्त की लड़ाई थी
वही तरकीब आँसुओं वाली
आज मैं ने भी आज़माई थी
ये भी कोई भला सवाल हुआ
याद आई तो कितनी आई थी
मिरी तन्हाई की ज़रूरत भी
उस की नज़रों में बेवफ़ाई थी
'इश्क़ का एक मरहला तू था
एक मंज़िल तिरी जुदाई थी
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