इतने बेदार ज़माने में ये साज़िश भरी रात

By ahmad-nadeem-qasmiOctober 23, 2020
इतने बेदार ज़माने में ये साज़िश भरी रात
मेरी तारीख़ के सीने पे उतर आई थी
अपनी संगीनों में इस रात की सफ़्फ़ाक सिपह
दूध पीते हुए बच्चों को पिरो लाई थी


घर के आँगन में रवाँ ख़ून था घर वालों का
और हर खेत पे शो'लों की घटा छाई थी
रास्ते बंद थे लाशों से पटी गलियों में
भीड़ सी भीड़ थी तन्हाई सी तन्हाई थी


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