इतनी वहशत है दर-ओ-बाम डराते हैं मुझे
By tajwer-shakeelMarch 1, 2024
इतनी वहशत है दर-ओ-बाम डराते हैं मुझे
कितनी वीरान हूँ मैं लोग बताते हैं मुझे
इक तरफ़ वो है जो ख़ुशियों से गले मिलता है
इक तरफ़ मैं कि सब आज़ार सताते हैं मुझे
जिन चराग़ों को तिरी शह पे चमकना आया
इतने बे-फ़ैज़ कि ख़ुद बुझ के जलाते हैं मुझे
जागती आँख तो वो सामने आए न कभी
ख़्वाब में हाथ पकड़ के जो उठाते हैं मुझे
हिज्र के हब्स में बे-जान मोहब्बत जज़्बे
घर के पंखे तलक एहसास दिलाते हैं मुझे
'ताजवर' उस से कहो वो है मोहब्बत पहली
वो नहीं मिलता बहुत लोग बुलाते हैं मुझे
कितनी वीरान हूँ मैं लोग बताते हैं मुझे
इक तरफ़ वो है जो ख़ुशियों से गले मिलता है
इक तरफ़ मैं कि सब आज़ार सताते हैं मुझे
जिन चराग़ों को तिरी शह पे चमकना आया
इतने बे-फ़ैज़ कि ख़ुद बुझ के जलाते हैं मुझे
जागती आँख तो वो सामने आए न कभी
ख़्वाब में हाथ पकड़ के जो उठाते हैं मुझे
हिज्र के हब्स में बे-जान मोहब्बत जज़्बे
घर के पंखे तलक एहसास दिलाते हैं मुझे
'ताजवर' उस से कहो वो है मोहब्बत पहली
वो नहीं मिलता बहुत लोग बुलाते हैं मुझे
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