इज़्तिराब-ए-ग़म से हासिल है सुकून-ए-दिल मुझे अब कोई मुश्किल नज़र आती नहीं मुश्किल मुझे चलते ही जादू मिरे दिल पर फ़रेब-ए-हुस्न का कर दिया आग़ाज़ ने अंजाम से ग़ाफ़िल मुझे मेरी ख़ुश-फ़हमी है या है मेरी आँखों का क़ुसूर मौज में आए नज़र नज़्ज़ारा-ए-साहिल मुझे महफ़िल-ए-इशरत न बन जाए कहीं मातम-कदा इस लिए उठने नहीं देता है दर्द-ए-दिल मुझे बे-ख़ुदी ही बे-ख़ुदी है ऐ निगाह-ए-शौक़-ए-दीद वो मुझे हासिल है लेकिन क्या हुआ हासिल मुझे खो दिया मुझ को फ़रेब-ए-जुस्तुजू-ए-यार ने हाए मंज़िल भी नहीं मिलती सर-ए-मंज़िल मुझे आ गई काम आ गई 'अहसन' मिरी दीवानगी वो समझने लग गए ज़ंजीर के क़ाबिल मुझे