जा छुपी है कहाँ गुफाओं में
By aiman-junaid-khanMay 29, 2024
जा छुपी है कहाँ गुफाओं में
ऐ ख़ुशी अब झलक अदाओं में
ज़िंदगी बोझ बनती जाती है
कुछ तो तरमीम कर सज़ाओं में
इक नज़र तो पलट के देख ज़रा
मैं भी हूँ तेरी आश्नाओं में
शहर का शहर यूँ दिवाना नहीं
बात कुछ तो है इन अदाओं में
दीद से ही इलाज मुमकिन है
ज़हर ही ज़हर है दवाओं में
ज़ीस्त की हर तपिश में जलती रही
यार बैठे रहे हवाओं में
ऐ हयात इस-क़दर न मुश्किल हो
ख़ौफ़ हो तेरी धूप छाँव में
मुझ को तस्लीम है जफ़ा तेरी
है 'अक़ीदत मिरी वफ़ाओं में
मुझ को मुझ से चुराने वाले सुन
तू है शामिल मिरी दुआओं में
आसमाँ मैं भी छू ही सकती थी
बेड़ियाँ हैं अनेक पाँव में
ज़िक्र अब तो करो मोहब्बत का
कितनी नफ़रत है इन फ़ज़ाओं में
रात भर जागते हैं बच्चे भी
अब नहीं फ़र्क़ शहर गाँव में
बस पसीने नसीब में आए
ज़िंदगी तेरी धूप छाँव में
वक़्त के मारे तन्हा तुम ही नहीं
मैं भी शामिल हूँ मुब्तलाओं में
ज़िंदगी और कितना चलना है
आबले पड़ गए हैं पाँव में
ऐ ख़ुशी अब झलक अदाओं में
ज़िंदगी बोझ बनती जाती है
कुछ तो तरमीम कर सज़ाओं में
इक नज़र तो पलट के देख ज़रा
मैं भी हूँ तेरी आश्नाओं में
शहर का शहर यूँ दिवाना नहीं
बात कुछ तो है इन अदाओं में
दीद से ही इलाज मुमकिन है
ज़हर ही ज़हर है दवाओं में
ज़ीस्त की हर तपिश में जलती रही
यार बैठे रहे हवाओं में
ऐ हयात इस-क़दर न मुश्किल हो
ख़ौफ़ हो तेरी धूप छाँव में
मुझ को तस्लीम है जफ़ा तेरी
है 'अक़ीदत मिरी वफ़ाओं में
मुझ को मुझ से चुराने वाले सुन
तू है शामिल मिरी दुआओं में
आसमाँ मैं भी छू ही सकती थी
बेड़ियाँ हैं अनेक पाँव में
ज़िक्र अब तो करो मोहब्बत का
कितनी नफ़रत है इन फ़ज़ाओं में
रात भर जागते हैं बच्चे भी
अब नहीं फ़र्क़ शहर गाँव में
बस पसीने नसीब में आए
ज़िंदगी तेरी धूप छाँव में
वक़्त के मारे तन्हा तुम ही नहीं
मैं भी शामिल हूँ मुब्तलाओं में
ज़िंदगी और कितना चलना है
आबले पड़ गए हैं पाँव में
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