जान अपनी चली जाए है जाए से किसू के
By abdul-rahman-ehsan-dehlviMay 18, 2024
जान अपनी चली जाए है जाए से किसू के
और जान में जान आए है आए से किसू के
वो आग लगी पान चबाए से किसू के
अब तक नहीं बुझती है बुझाए से किसू के
बुझने दे ज़रा आतिश-ए-दिल और न भड़का
मेहंदी न लगा यार लगाए से किसू के
क्या सोइए फिर ग़ुल है दर-ए-यार पे शायद
चौंका है वो ज़ंजीर हिलाए से किसू की
कह दो न उठाए वो मुझे पास से अपने
जी बैठा ही जाता है उठाए से किसू की
जब मैं ने कहा आइए मन जाएगी बोली
हम और भी रूठेंगे मनाए से किसू की
चुप्पी में जो कुछ बात की मैं ने तो ये बोली
हम तो नहीं दबने की दबाए से किसू की
यारो न चराग़ और न मैं शम' हूँ लेकिन
हर शाम को जलता हूँ जलाए से किसू की
पाता नहीं घर उस का समझता ही नहीं मैं
उस बैत के मा'नी भी बताए से किसू की
जब उस से कहा मेरी सिफ़ारिश में किसू ने
हासिल भी रुलाए से कुढ़ाए से किसू की
इक ता'न से ये हँस के लगा कहने कि बे-शक
हम रोलते मोती हैं रुलाए से किसू की
कहता है कि 'एहसाँ' न कहेगा तो सुनेगा
मतला' ये कहा मैं ने कहाये से किसू की
और जान में जान आए है आए से किसू के
वो आग लगी पान चबाए से किसू के
अब तक नहीं बुझती है बुझाए से किसू के
बुझने दे ज़रा आतिश-ए-दिल और न भड़का
मेहंदी न लगा यार लगाए से किसू के
क्या सोइए फिर ग़ुल है दर-ए-यार पे शायद
चौंका है वो ज़ंजीर हिलाए से किसू की
कह दो न उठाए वो मुझे पास से अपने
जी बैठा ही जाता है उठाए से किसू की
जब मैं ने कहा आइए मन जाएगी बोली
हम और भी रूठेंगे मनाए से किसू की
चुप्पी में जो कुछ बात की मैं ने तो ये बोली
हम तो नहीं दबने की दबाए से किसू की
यारो न चराग़ और न मैं शम' हूँ लेकिन
हर शाम को जलता हूँ जलाए से किसू की
पाता नहीं घर उस का समझता ही नहीं मैं
उस बैत के मा'नी भी बताए से किसू की
जब उस से कहा मेरी सिफ़ारिश में किसू ने
हासिल भी रुलाए से कुढ़ाए से किसू की
इक ता'न से ये हँस के लगा कहने कि बे-शक
हम रोलते मोती हैं रुलाए से किसू की
कहता है कि 'एहसाँ' न कहेगा तो सुनेगा
मतला' ये कहा मैं ने कहाये से किसू की
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