जान से खेल गया एक दिवाना आख़िर

By tariq-islam-kukraviMarch 1, 2024
जान से खेल गया एक दिवाना आख़िर
कब तलक यूँही सर-ए-बज़्म सिसकता आख़िर
आ के इक बार दिखा दीजिए चेहरा आख़िर
सिर्फ़ बाक़ी है यही दिल में तमन्ना आख़िर


बस इसी सोच में दिन-रात निकल जाते हैं
कैसे हल होगा मिरे दिल का मु'अम्मा आख़िर
मैं ने माना कि वो हर बात को मानेगा मगर
दिल को समझाने का भी आए तरीक़ा आख़िर


इक न इक रोज़ तो जाना ही पड़ेगा 'तारिक़'
ख़त्म हो जाएगा इक रोज़ ये जल्वा आख़िर
83833 viewsghazalHindi