जाने कहाँ थे और चले थे कहाँ से हम बेदार हो गए किसी ख़्वाब-ए-गिराँ से हम ऐ नौ-बहार-ए-नाज़ तिरी निकहतों की ख़ैर दामन झटक के निकले तिरे गुल्सिताँ से हम पिंदार-ए-आशिक़ी की अमानत है आह-ए-सर्द ये तीर आज छोड़ रहे हैं कमाँ से हम आओ ग़ुबार-ए-राह में ढूँडें शमीम-ए-नाज़ आओ ख़बर बहार की पूछें ख़िज़ाँ से हम आख़िर दुआ करें भी तो किस मुद्दआ' के साथ कैसे ज़मीं की बात कहें आसमाँ से हम