जाने से तेरे मुझ पे ये कैसा असर पड़ा
By abu-hurrairah-abbasiSeptember 2, 2024
जाने से तेरे मुझ पे ये कैसा असर पड़ा
सदियों का जैसे हो कोई वीरान घर पड़ा
क़िस्सा कई सदी का फिर आँखों में आ गया
गाँव के रास्ते पे जो बूढ़ा शजर पड़ा
सुनते हैं चाँद तारे हैं पूरे 'उरूज पर
हुजरे में आसमान मगर बे-ख़बर पड़ा
इक सानहे ने मुझ से लिया छीन मुझ को यूँ
ख़ुद को भी ढूँढना मुझे फिर दर-ब-दर पड़ा
इतनी तवील थी शब-ए-यलदा कि जिस के बा'द
आख़िर पे दौरा दिल का ही वक़्त-ए-सहर पड़ा
क्या क्या सुनाएँ दिल का है ये क़िस्सा मुख़्तसर
दहलीज़-ए-यार पर रहा है 'उम्र भर पड़ा
सदियों का जैसे हो कोई वीरान घर पड़ा
क़िस्सा कई सदी का फिर आँखों में आ गया
गाँव के रास्ते पे जो बूढ़ा शजर पड़ा
सुनते हैं चाँद तारे हैं पूरे 'उरूज पर
हुजरे में आसमान मगर बे-ख़बर पड़ा
इक सानहे ने मुझ से लिया छीन मुझ को यूँ
ख़ुद को भी ढूँढना मुझे फिर दर-ब-दर पड़ा
इतनी तवील थी शब-ए-यलदा कि जिस के बा'द
आख़िर पे दौरा दिल का ही वक़्त-ए-सहर पड़ा
क्या क्या सुनाएँ दिल का है ये क़िस्सा मुख़्तसर
दहलीज़-ए-यार पर रहा है 'उम्र भर पड़ा
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