जब हुक्म मानते ही नहीं है वहां के हम

By July 15, 2024
जब हुक्म मानते ही नहीं है वहां के हम कैसे ज़मीं की बात करें आसमां से हम गुजरे हैं रोज एक नए इम्तिहां से हम अब दूर जा रहे हैं तेरी दास्तां से हम कुछ तो बता
हमारा वह कुनबा कहां गया रो-रो के पूछते हैं यह खाली मकां से हम क्यों सर झुकाएं ग़ैर ख़ुदाओं के सामने सब कुछ तो पा रहे हैं तेरे आस्तां से हम सूली का डर नहीं है
न परवाह मौत की सच ही अदा करेंगें हमेशा ज़ुबां से हम होता नहीं यकीन किसी शख्स पर यहां “वाकिफ हुए हैं जब से फरेबे जहां से हम” किस्मत के हेर फेर से ‘अरशद’ निकल न पाए फिर आ गए वहीं पे
चले थे जहां से हम -अरशद रसूल बदायूंनी
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