जब से नसीब मेरा ठिकाने पे आ गया

By aarif-nazeerJuly 12, 2024
जब से नसीब मेरा ठिकाने पे आ गया
ख़ुद ही शिकार मेरा निशाने पे आ गया
पर्दा-नशीन पर्दा-नशीनी में गुम रहे
इल्ज़ाम मेरे आँख उठाने पे आ गया


जिस को समझ रहा था फ़क़त आस्तीं का साँप
वो साँप मेरे दिल के ख़ज़ाने पे आ गया
हाथों से उस के छूट गईं रौनक़ें तमाम
इंसान जब से आब पे दाने पे आ गया


तहक़ीक़ की तो अपने मुक़ाबिल था मेरा आप
जब मैं तबाहियों के दहाने पे आ गया
हम ने लहू से जिस को जलाया मुंडेर पर
अब वो चराग़ घर को जलाने पे आ गया


'आरिफ़-नज़ीर’ शौक़ से पीने को आएँगे
तिश्ना-लबों को तू जो पिलाने पे आ गया
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