जब तक आसूदगी नहीं होती
By muhammad-hasan-ahsan-maliganviMay 7, 2022
जब तक आसूदगी नहीं होती
ज़िंदगी ज़िंदगी नहीं होती
ख़ून-ए-दिल दे के देख तो कैसे
शाख़-ए-हसरत हरी नहीं होती
चाँद को चाँदनी अता कर दी
मेरे घर रौशनी नहीं होती
किस अदा से वो आते हैं दिल में
दिल को भी आगही नहीं होती
गुमरही रहनुमा है मंज़िल की
गुमरही गुमरही नहीं होती
दार पर चढ़ तो जाएँ चढ़ने से
ज़िंदगी सरमदी नहीं होती
मैं जलाता हूँ शम-ए-दिल 'अहसन'
हाए क्यों रौशनी नहीं होती
ज़िंदगी ज़िंदगी नहीं होती
ख़ून-ए-दिल दे के देख तो कैसे
शाख़-ए-हसरत हरी नहीं होती
चाँद को चाँदनी अता कर दी
मेरे घर रौशनी नहीं होती
किस अदा से वो आते हैं दिल में
दिल को भी आगही नहीं होती
गुमरही रहनुमा है मंज़िल की
गुमरही गुमरही नहीं होती
दार पर चढ़ तो जाएँ चढ़ने से
ज़िंदगी सरमदी नहीं होती
मैं जलाता हूँ शम-ए-दिल 'अहसन'
हाए क्यों रौशनी नहीं होती
10435 viewsghazal • Hindi