जब उस की तरफ़ से कोई पत्थर नहीं आता
By haris-bilalFebruary 6, 2024
जब उस की तरफ़ से कोई पत्थर नहीं आता
जो बोझ मिरे दिल पे है मुझ पर नहीं आता
दरिया हूँ और इक 'उम्र से बहने में लगा हूँ
लेकिन मिरे हिस्से में समुंदर नहीं आता
तुम लौट के आए भी तो उस दिल में कि जिस में
गुज़रा हुआ मौसम भी पलट कर नहीं आता
हाथों की लकीरें कहीं ले कर नहीं जातीं
उलझे हुए रस्तों में कभी घर नहीं आता
या'नी तिरे होते ही वो ता'मीर हुआ है
रस्ता कोई उस शहर से बाहर नहीं आता
इस दिल से अलग तो नहीं इस आँख का होना
क्या शाख़ से फल गिर के ज़मीं पर नहीं आता
इक ख़्वाब हक़ीक़त में बदलता नहीं 'हारिस'
इक दर्द तिरे हिज्र के अंदर नहीं आता
जो बोझ मिरे दिल पे है मुझ पर नहीं आता
दरिया हूँ और इक 'उम्र से बहने में लगा हूँ
लेकिन मिरे हिस्से में समुंदर नहीं आता
तुम लौट के आए भी तो उस दिल में कि जिस में
गुज़रा हुआ मौसम भी पलट कर नहीं आता
हाथों की लकीरें कहीं ले कर नहीं जातीं
उलझे हुए रस्तों में कभी घर नहीं आता
या'नी तिरे होते ही वो ता'मीर हुआ है
रस्ता कोई उस शहर से बाहर नहीं आता
इस दिल से अलग तो नहीं इस आँख का होना
क्या शाख़ से फल गिर के ज़मीं पर नहीं आता
इक ख़्वाब हक़ीक़त में बदलता नहीं 'हारिस'
इक दर्द तिरे हिज्र के अंदर नहीं आता
43715 viewsghazal • Hindi