ज़िंदगी ऐसी सज़ा है कि सज़ा भी तो नहीं दिल धड़कता है धड़कने की सदा भी तो नहीं क्या ख़द्द-ओ-ख़ाल थे कुछ याद रहा भी तो नहीं ऐसा बछड़ा कोई मुद्दत से मिला भी तो नहीं आहटें क्या तिरे क़दमों की सुनाई देंगी अब कि पहलू में दिल नग़्मा-सरा भी तो नहीं रहनोरदान रह-ए-इश्क़ भटक ही न सकीं इतने ताबिंदा नुक़ूश-ए-कफ़-ए-पा भी तो नहीं यूँ तिरी याद में इक उम्र गुज़ारी कि मुझे अपनी तन्हाई का एहसास हुआ भी तो नहीं किस को रूदाद-ए-ग़म-ए-इश्क़ सुनाई जाए दश्त में और कोई आबला-पा भी तो नहीं एक मुद्दत से कोई ज़ख़्म-ए-दिल-ओ-जान 'नश्तर' बे-नियाज़-ए-करम मौज-ए-सबा भी तो नहीं