ज़िंदगी ऐसी सज़ा है कि सज़ा भी तो नहीं

By shakeel-nashtarNovember 19, 2020
ज़िंदगी ऐसी सज़ा है कि सज़ा भी तो नहीं
दिल धड़कता है धड़कने की सदा भी तो नहीं
क्या ख़द्द-ओ-ख़ाल थे कुछ याद रहा भी तो नहीं
ऐसा बछड़ा कोई मुद्दत से मिला भी तो नहीं


आहटें क्या तिरे क़दमों की सुनाई देंगी
अब कि पहलू में दिल नग़्मा-सरा भी तो नहीं
रहनोरदान रह-ए-इश्क़ भटक ही न सकीं
इतने ताबिंदा नुक़ूश-ए-कफ़-ए-पा भी तो नहीं


यूँ तिरी याद में इक उम्र गुज़ारी कि मुझे
अपनी तन्हाई का एहसास हुआ भी तो नहीं
किस को रूदाद-ए-ग़म-ए-इश्क़ सुनाई जाए
दश्त में और कोई आबला-पा भी तो नहीं


एक मुद्दत से कोई ज़ख़्म-ए-दिल-ओ-जान 'नश्तर'
बे-नियाज़-ए-करम मौज-ए-सबा भी तो नहीं
55835 viewsghazalHindi