ज़िंदगी हो मिरी नज़र में हो

By aslam-noor-aslamJuly 31, 2020
ज़िंदगी हो मिरी नज़र में हो
हो दवाओं में चश्म-ए-तर में हो
जब भी लिक्खा है तुम को लिक्खा है
तुम ही लफ़्ज़ों में हो सतर में हो


तुम ही मेहवर हो हर तख़य्युल का
मीर-ओ-ग़ालिब में हो ज़फ़र में हो
तुम फ़ज़ाओं में रक़्स करती हो
कू-ब-कू फैलती ख़बर में हो


अब ज़माने से क्या छुपाऊँ मैं
तुम तो महताब हो नज़र में हो
मेरी क़िस्मत बने भी रिश्ते क़मर
कोई तुम सा जो मेरे घर में हो


कुछ लबों पर हमें भी है 'असलम'
जी के उतरे हुए भँवर में हो
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