ज़िंदगी के सारे मौसम आ के रुख़्सत हो गए

By aziz-bano-darab-wafaOctober 28, 2020
ज़िंदगी के सारे मौसम आ के रुख़्सत हो गए
मेरी आँखों में कहीं बरसात बाक़ी रह गई
आस का सूरज तो सारी ज़िंदगी निकला मगर
दिन के अंदर जाने कैसे रात बाक़ी रह गई


आईना-ख़ाना बना के जिस ने तोड़ा था मुझे
मेरी किरचों में उसी की ज़ात बाक़ी रह गई
मेरा इक इक लफ़्ज़ मुझ से छीन कर वो ले गया
जिस के कारन आज तक वो बात बाक़ी रह गई


42954 viewsghazalHindi