ज़िंदगी मुझ को कहाँ ले आई है

By ramzan-ali-saharNovember 13, 2020
ज़िंदगी मुझ को कहाँ ले आई है
सामने दरिया है पीछे खाई है
मुझ को ग़ैरों से नहीं शिकवा कोई
था जो अपना वो भी तो हरजाई है


बद-नसीबी को कोई अपनाए क्यूँ
फिर मिरी जानिब ही वो लौट आई है
बंद मुट्ठी में न जुगनू को करो
ढल गया है दिन तो फिर शब आई है


कुछ न पाएगा तो साहिल पर 'सहर'
जा वहीं पर जिस जगह गहराई है
40674 viewsghazalHindi