जैसे ख़ामोश-बयानी को बयाँ होने में

By ali-tasifJune 3, 2024
जैसे ख़ामोश-बयानी को बयाँ होने में
'उम्र लगती है यहाँ ज़मज़मा-ख़्वाँ होने में
इतना आसाँ न समझ जान निकल जाती है
राह-ए-पुर-ख़ार पे इस तरह रवाँ होने में


आँख खुलते ही सुकूत-ए-शब-ए-हिज्राँ ने कहा
एक लम्हा है बहुत ख़्वाब धुआँ होने में
किन मराहिल से गुज़रता हुआ पहुँचा है यहाँ
ज़ब्त से पूछ जो गुज़री है फ़ुग़ाँ होने में


इस से बेहतर था कि तस्लीम न होना करता
ख़ुद को बे-सर्फ़ा किया सर्फ़-ए-जहाँ होने में
ज़िंदगी बीत गई जिस को बनाते हुए घर
एक लम्हा न लगा उस को मकाँ होने में


और कुछ देर में सूरज भी निकल आएगा
और कुछ देर ही बाक़ी है अज़ाँ होने में
48675 viewsghazalHindi