जलने वालों को और सताते हैं
By aftab-shahSeptember 5, 2024
जलने वालों को और सताते हैं
आओ सूरज पे घर बनाते हैं
चंदा मामूँ से दोस्ती कर के
चर्ख़ा बुढ़िया से छीन लाते हैं
फिर से करते हैं दुश्मनी ख़ुद से
फिर से अपनों के काम आते हैं
आँख वालों से रौशनी ले कर
नाक वालों में बाँट आते हैं
जिस में बंदा न कोई सीधा हो
ऐसी बस्ती कोई बसाते हैं
बूट ख़्वाहिश में चाटने वाले
अपने लोगों पे हल चलाते हैं
उन को कहते हैं छोड़ दें वो हमें
सादा लोगों से घर सजाते हैं
सारी दुनिया से मशवरा कर के
अपनी मर्ज़ी के गीत गाते हैं
जिन पे हो नाज़ ज़िंदगी में वही
दिल की ईंटों पे बम गिराते हैं
वा'दे करते हैं जीने मरने के
धोके कैसे ये दिल लुभाते हैं
अपनी हस्ती में डूबने के लिए
अब के नाव नदी पे लाते हैं
आओ सूरज पे घर बनाते हैं
चंदा मामूँ से दोस्ती कर के
चर्ख़ा बुढ़िया से छीन लाते हैं
फिर से करते हैं दुश्मनी ख़ुद से
फिर से अपनों के काम आते हैं
आँख वालों से रौशनी ले कर
नाक वालों में बाँट आते हैं
जिस में बंदा न कोई सीधा हो
ऐसी बस्ती कोई बसाते हैं
बूट ख़्वाहिश में चाटने वाले
अपने लोगों पे हल चलाते हैं
उन को कहते हैं छोड़ दें वो हमें
सादा लोगों से घर सजाते हैं
सारी दुनिया से मशवरा कर के
अपनी मर्ज़ी के गीत गाते हैं
जिन पे हो नाज़ ज़िंदगी में वही
दिल की ईंटों पे बम गिराते हैं
वा'दे करते हैं जीने मरने के
धोके कैसे ये दिल लुभाते हैं
अपनी हस्ती में डूबने के लिए
अब के नाव नदी पे लाते हैं
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