जल्वे हवा के दोश ये कोई घटा के देख

By azhar-lakhnawiOctober 28, 2020
जल्वे हवा के दोश ये कोई घटा के देख
मयख़ाने उड़ते फिरते हैं मंज़र फ़ज़ा के देख
क्यूँ शान-ए-हुस्न आइना-ख़ाने में जा के देख
'अज़हर' को अपने हुस्न का मज़हर बना के देख


महसूर हो गई है तजल्ली निगाह में
अब तो मिरी निगाह से दामन बचा के देख
क्या जाने किस मक़ाम ये क़िस्मत चमक उठे
मायूस क्यूँ है दस्त-ए-तलब तो बढ़ा के देख


ज़र्रों से फूट निकलेगी उल्फ़त की रौशनी
यारो न हो तो ख़ाक में दिल को मिला के देख
सद-रश्क ज़िंदगी है हवादिस का आइना
'अज़हर' इस आइने में ज़रा मुस्कुरा के देख


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