जाम टकराओ वक़्त नाज़ुक है

By saghar-siddiquiApril 21, 2024
जाम टकराओ वक़्त नाज़ुक है
रंग छलकाओ वक़्त नाज़ुक है
हसरतों की हसीन क़ब्रों पर
फूल बरसाओ वक़्त नाज़ुक है


इक फ़रेब और ज़िंदगी के लिए
हाथ फैलाओ वक़्त नाज़ुक है
रंग उड़ने लगा है फूलों का
अब तो आ जाओ वक़्त नाज़ुक है


तिश्नगी तिश्नगी अरे तौबा
ज़ुल्फ़ लहराओ वक़्त नाज़ुक है
बज़्म-ए-'साग़र' है गोश-बर-आवाज़
कुछ तो फ़रमाओ वक़्त नाज़ुक है


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