ज़मज़मा इज़्तिराब कुछ भी न था इश्क़-ए-ख़ाना-ख़राब कुछ भी न था मेरा सब कुछ था सिर्फ़ एक सवाल और इस का जवाब कुछ भी न था साँस तक तो गिने-चुने हुए थे कुछ न था बे-हिसाब कुछ भी न था सज्दा-ए-शुक्र ने बचाया है वर्ना मेरा सवाब कुछ भी न था अब तुझे देख कर ये जाना है वो जो देखा था ख़्वाब कुछ भी न था