जंगलों का न ही बाग़ात का पाला हुआ है

By akhtar-hashmiApril 22, 2023
जंगलों का न ही बाग़ात का पाला हुआ है
ये कबूतर तो मिरे हाथ का पाला हुआ है
अम्न का ये जो परिंदा है अमाँ में मेरी
ये मिरी निय्यत-ए-इसबात का पाला हुआ है


जिस को भी देखिए वो क़हत का लगता है शिकार
जबकि ये क़हत भी बरसात का पाला हुआ है
सोज़ तो इस में नहीं है मगर इक हूक सी है
दिल का ये ज़ख़्म तो ख़दशात का पाला हुआ है


मैं ग़लत हो नहीं सकता हूँ किसी भी सूरत
ये तसव्वुर ही ख़ुराफ़ात का पाला हुआ है
हर समझदार उसे शैख़ समझने लग जाए
हर ग़ुलाम ऐसा जो सादात का पाला हुआ है


जाने कैसे ये समझ लेता है दिल की हलचल
क्या मिरा ज़ेहन इशारात का पाला हुआ है
आज उसी ज़हर को पीना है तुम्हें भी 'अख़्तर'
हाँ वही ज़हर जो सुक़रात का पाला हुआ है


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