जश्न था ऐश-ओ-तरब की इंतिहा थी मैं न था यार के पहलू में ख़ाली मेरी जा थी मैं न था उस ने कब बरख़ास्त ऐ दिल महफ़िल-ए-मेराज की किस से पूछूँ रात कम थी या सवा थी में न था मैं तड़प कर मर गया देखा न उस ने झाँक कर उस सितमगर को अज़ीज़ अपनी हया थी मैं न था वादा ले लेता कि खिलवाना न मुझ को ठोकरें आलम-ए-अर्वाह में जिस जा क़ज़ा थी मैं न था सर्फ़ करता किस ख़ुशी से जा के उस में अपनी ख़ाक क्या कहूँ जिस दिन बनाई कर्बला थी मैं न था मुँह न खुल सकता न होते हम-कलाम उन से कलीम उम्र भर हसरत ही रहती बात क्या थी मैं न था ले गई थी मुझ को हसरत जानिब-ए-ख़ुद-रफ़्तगी जिस तरफ़ को मंज़िल-ए-बीम-ओ-रजा थी मैं न था दिल उलट जाता मिरा या दम निकल जाता मिरा शुक्र है जब लन-तरानी की सदा थी मैं न था लाला-ओ-गुल को बचा लेता ख़िज़ाँ से ऐ 'शरफ़' बाग़ में जिस वक़्त नाज़िल ये बला थी मैं न था