ज़ुल्म-ओ-सितम का जब्र का अंजाम क्या हुआ था नामवर तो ख़ूब मगर नाम क्या हुआ ये पूछती है वक़्त की दीमक बता ज़रा जमशेद तू कहाँ है तिरा जाम क्या हुआ जलते मचलते ग़म में पिघलते रहे मगर आई जो सुब्ह भूल गए शाम क्या हुआ मेरा दिया बुझा न सकी सर-फिरी हवा रूठी है तू भी गर्दिश-ए-अय्याम क्या हुआ रावन था मैं तो उफ़ की भी जुरअत किसी में थी बन-बास मिल गया जो 'क़मर' राम क्या हुआ