जज़्बा-ए-शौक़ का इज़हार करूँ या न करूँ दिल को रुस्वा सर-ए-बाज़ार करूँ या न करूँ दर्द ख़ुद बढ़ के हुआ जाता है दरमाँ दिल का अब इलाज-ए-दिल-ए-बीमार करूँ या न करूँ क़ैस-ओ-मंसूर की तक़लीद से दम घुटता है एहतिमाम-ए-रसन-ओ-दार करूँ या न करूँ जिस को ख़ुद्दारी-ए-जज़्बात का एहसास न हो नज़्र उस को दिल-ए-ख़ुद्दार करूँ या न करूँ उस की रुस्वाई का बाइ'स न हों मेरी ग़ज़लें नज़्र-ए-अहबाब ये शहकार करूँ या न करूँ ले न अंगड़ाई कहीं गर्दिश-ए-अय्याम 'उमर' हुस्न-ए-ख़्वाबीदा को बेदार करूँ या न करूँ