जिगर में सोज़ है दीदार-ए-यार से पहले चमन में आग लगी है बहार से पहले तह-ए-मज़ार किए किस ने दाग़-ए-दिल रौशन पतंगे आ गए शम-ए-मज़ार से पहले ये जल्वा-गाह सलामत मुझे वही दे दो जो महवियत थी ग़म-ए-इंतिज़ार से पहले मज़ा क़रार में ज़ाइद कि बे-क़रारी में ये पूछ मेरे दिल-ए-बे-क़रार से पहले इलाही कौन था तख़रीब-ए-गुल्सिताँ में निहाँ ख़िज़ाँ के भेस में फ़स्ल-ए-बहार से पहले घटा ये छाई हुई बे-सबब नहीं 'अहसन' धुआँ उठा था दिल-ए-सोगवार से पहले