जिस के नेज़े पे है ये सर मेरा उस के आँखों में देख डर मेरा प्यास पानी को लग रही होगी आग का जिस्म देख कर मेरा हम ग़रीबों का ये असासा है एक दस्तार और ये सर मेरा नक़्श-ए-पा तक नहीं बने उस के जब कि सहरा में है ये घर मेरा जब से ठुकरा दिया तिरे ग़म ने दिल ये फिरता है दर-ब-दर मेरा ना-ख़ुदा डूबने से क्या बचता ले के डूबा था मुझ को डर मेरा मै-कदा बन गईं तिरी आँखें अब तो आँखों से जाम भर मेरा