जिस की ख़ातिर मिरी दीन-दारी गई
By shamim-danishFebruary 29, 2024
जिस की ख़ातिर मिरी दीन-दारी गई
वो भी दुनिया न मुझ से सवारी गई
जो तिरे साथ इक शब गुज़ारी गई
ज़िंदगी भर न उस की ख़ुमारी गई
रौनक़ें हैं न अब हैं वो रा'नाइयाँ
बज़्म से क्या सदारत हमारी गई
वक़्त ने छीन लीं सारी आसाइशें
शाहज़ादे की कब वज़'-दारी गई
थे मोहब्बत के आदाब पेश-ए-नज़र
दिल की ख़्वाहिश तो दिल ही में मारी गई
वो भी दुनिया न मुझ से सवारी गई
जो तिरे साथ इक शब गुज़ारी गई
ज़िंदगी भर न उस की ख़ुमारी गई
रौनक़ें हैं न अब हैं वो रा'नाइयाँ
बज़्म से क्या सदारत हमारी गई
वक़्त ने छीन लीं सारी आसाइशें
शाहज़ादे की कब वज़'-दारी गई
थे मोहब्बत के आदाब पेश-ए-नज़र
दिल की ख़्वाहिश तो दिल ही में मारी गई
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